देवी॑र्द्वारो॒ वि श्र॑यध्वं सुप्राय॒णा न॑ ऊ॒तये॑। प्रप्र॑ य॒ज्ञं पृ॑णीतन ॥५॥
devīr dvāro vi śrayadhvaṁ suprāyaṇā na ūtaye | pra-pra yajñam pṛṇītana ||
देवीः॑। द्वा॒रः॒। वि। श्र॒य॒ध्व॒म्। सु॒ऽप्र॒ऽअ॒य॒नाः। नः॒। ऊ॒तये॑। प्रऽप्र॑। य॒ज्ञम्। पृ॒णी॒त॒न॒ ॥५॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब गृहाश्रमविषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ गृहाश्रमविषयमाह ॥
हे पुरुषा ! यूयं सुप्रायणा देवीर्द्वार इवोत्तमाः पत्नीर्वि श्रयध्वं न ऊतये यज्ञं प्रप्र पृणीतन ॥५॥